Friday, September 30, 2011

राहुल गाँधी के बयान--

अब विदेशियों को भी राहुल गाँधी से निराशा हो रही है। अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की शोध संस्था ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि राहुल गाँधी बोलने में प्रायः गड़बड़ा जाते हैं। 94 पृष्ठों की यह रिपोर्ट भारत की स्थिति पर है, और इस में अगले लोक सभा चुनाव के बारे में भी कुछ टिप्पणियाँ हैं। इसी रिपोर्ट में अगले लोक सभा चुनाव में राहुल बनाम मोदी का अनुमान भी किया गया है।
राहुल का नवीनतम बयान आया है कि वे भी कश्मीरी हैं! संकेत पूर्वजों के कश्मीरी होने से है। मगर इस आधार पर तो राहुल सबसे पहले 50 % इटालियन हैं। शेष 50 % भारतीयता में, आधा उत्तर प्रदेशी और आधा बंबइया। चूँकि औरंगजेब वाले युग में ही उनके पूर्वज इलाहाबाद आ चुके थे। इस प्रकार उनके पूर्वज लगभग तेरह पीढ़ी पहले कश्मीरी थे। कितनी भी उदारता से हिसाब करें तो राहुल 5 प्रतिशत कश्मीरी ही हुए, जबकि उनका 50 प्रतिशत इटालियन होना पक्का है। इटली के संविधान के अनुसार तो राहुल शत-प्रतिशत इटालियन हैं, क्योंकि उनके जन्म के समय उनकी माता इटली की नागरिक थीं।
बहरहाल, यह लंबे समय से देखा जा रहा है कि राहुल जब भी कुछ महत्वपूर्ण बोलने की कोशिश करते हैं, तो कोई गड़बड़ी हो जाती है। प्रायः कांग्रेस के चतुर-सुजानों को स्पष्टीकरण देने आना पड़ता है। इससे पहले राहुल ने अन्ना के अनशन के दौरान संसद में बयान दिया। उस में स्कूली लड़के जैसे उत्साह में अपने बयान को स्वयं ही ‘गेम चेंजर’ कहते बड़ी-बड़ी बातें कह डालीं। किन्तु उस का तात्कालिक स्थिति पर रत्ती भर असर न पड़ा। फिर जब 27 अगस्त को संसद में उसी सदर्भ में चल रही ऐतिहासिक बहस को संपूर्ण भारत देख-सुन रहा था, तब राहुल गाँधी संसद आए ही नहीं! न कोई कैफियत आई। संसद में उस दिन अनुपस्थिति भी एक बयान थी! राहुल की राजनीतिक समझ का उदाहरण कि वे अत्यंत मह्त्वपूर्ण अवसरों पर भी संसद में रहने की जिम्मेदारी महसूस नहीं करते। वैसे, राहुल संसद में शायद ही कभी आते हैं। किसी ने अनुमान से कहा है राहुल अब तक कुल मिलाकर संभवतः पंद्रह दिन भी संसद नहीं आए हैं।
राहुल को सक्रिय राजनीति में आए तेरह वर्ष हो चुके। तब यह अच्छे लक्षण नहीं कि बार-बार उन के कहे की सफाई देनी पड़े। विगत जुलाई मुंबई में आतंकी हमलों के बाद ‘एक प्रतिशत’ आतंकी घटनाओं के न रुक सकने वाला कथन भी वैसा ही था। उससे पहले मई में भट्टा-परसौल में पुलिस द्वारा ‘70 किसानों’ की सामूहिक हत्या और महिलाओं के साथ बलात्कार वाली काल्पनिक बात पुरानी भी नहीं पड़ी थी। और बार-बार कांग्रेस वक्ताओं को सफाई देनी पड़ी।
उस से पहले राहुल प्रतिबंधित, आतंकवादी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) को एक जैसा बता चुके हैं। यानी एक घोषित भारत-विरोधी आतंकी संगठन की तुलना एक देशभक्त संगठन से। ऐसी समदर्शिता से आतंकवाद विरोधी लड़ाई कमजोर ही हुई।
पिछले वर्ष फरवरी में दरभंगा में राहुल गाँधी ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में गुजरात और मोदी के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी कर दी, जिस पर उन्हें तुरत माफी माँगनी पड़ी। इसलिए नहीं कि उन्हें मोदी की आलोचना का अधिकार न था, बल्कि इसलिए कि भाषण के आरंभ में स्वयं राहुल ने कहा था कि वे राजनीति करने नहीं आए हैं। अतः जैसे ही उन्होंने गुजरात पर टिप्पणी की तो उपस्थित छात्रों ने राहुल को आड़े हाथों लिया और राहुल गड़बड़ा गए!
बाबरी मस्जिद विध्वंस पर भी एक बार राहुल ने कांग्रेस को झेंपने पर ला दिया था। यह कह कर कि यदि “उन के परिवार का कोई व्यक्ति सत्ता में होता, तो मस्जिद नहीं टूटती।” यह परोक्ष रूप से कांग्रेस और प्रधानमंत्री नरसिंहराव पर ही लांछन था। उससे पहले, राहुल ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को भी अपने परिवार की देन बताया था। उन के शब्द थे, “एक बार मेरा परिवार कुछ तय कर लेता है, तो उससे पीछे नहीं हट चाहे वह भारत की स्वतंत्रता हो, पाकिस्तान को तोड़ना हो या देश को 21वीं सदी में ले जाना हो।” इस एक ही वाक्य में, तीन विचित्र कथन थे। भारत के अनगिन महान स्वतंत्रता सेनानियों की हेठी, बंगलादेश के मुक्ति-संग्राम का अपमान तथा काल-गति पर दावा। यह सब बचकाना ही कहा जा सकता है।
जैसे बयान राहुल देते रहे हैं, उस से संदेह होता है। क्या वे एक बाहरी, मंदबुद्धि औसत व्यक्ति हैं, जो अपनी बात का भी अर्थ नहीं समझते? जितने साधन, सलाहकार उन्हें उपलब्ध हैं, और देश-विदेश देखने का जितना उन्हें अवसर मिला – उस से उनकी बातों में इतने हल्केपन से आश्चर्य होता है। राहुल की राजनीतिक पहलकदमियाँ अभी तक कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई। तेरह वर्ष से ‘भावी प्रधानमंत्री’ के रूप में राजनतिक सक्रियता का यह परिणाम शोचनीय है। क्या इसीलिए वसंत साठे जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी प्रियंका गाँधी को लाने की माँग कर रहे थे?
राहुल के अटपटे वचन केवल भाषण देने की रौ में हुई अनचाही भूल नहीं। तहलका साप्ताहिक (सितंबर 2005) को दिए गए अपने विस्तृत साक्षात्कार में उन्होंने सोच-समझकर कहा था कि वह तो 25 वर्ष की आयु में प्रधान मंत्री बन सकते थे। केवल बूढ़े कांग्रेसियों पर दया करके उन्होंने ऐसा न किया, कि उन बूढ़ों को आदेश, निर्देश, आदि देकर क्या उन की हेठी करें! हमारे अधिकांश सांसदों के लिए एक अशोभन शब्द का प्रयोग करते हुए राहुल ने कहा था कि सासंदों को सदन में सवाल पूछना तक नहीं आता, केवल मुझे आता है। अपने पूछे एक प्रश्न का उदाहरण देते हुए राहुल ने साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार को याद भी दिलाया, कि देखो, प्रश्न ऐसे पूछते हैं!
युवराज के उस ‘प्रथम विस्तृत साक्षात्कार’ पर जब तहलका मचा, तो कांग्रेस के चतुर-सुजानों ने उसे साक्षात्कार मानने से ही इंकार कर दिया! सफाई दी कि वह तो अनौपचारिक बात-चीत थी जिसे तहलका ने अनुचित रूप से साक्षात्कार बताकर छाप दिया। (क्या राहुल तहलका की ख्याति से भी अनजान थे?) पत्रिका पहले तो अड़ी, फिर दबाव पड़ने पर गोल-मोल तरीका अपनाकर ‘यदि कोई भूल हुई हो’, वैसा कुछ छापने के लिए खेद प्रकट किया। किंतु खेद की भाषा ही बताती थी कि वस्तुतः कोई भूल नहीं हुई थी। इसीलिए कांग्रेस ने साक्षात्कार में छपी किसी बात को चुनौती देकर बात-चीत का रिकॉर्ड सार्वजनिक करने की माँग नहीं की। इस से यही प्रमाणित हुआ कि राहुल का अहंकार और अज्ञान उस टेप में व्यवस्थित, प्रामाणिक रूप में दर्ज है।
सबसे चिंतनीय बात यह है कि तेरह वर्ष के राजनीतिक अनुभव के बाद भी राहुल कोई रचनात्मक कार्यक्रम नहीं दे पाए जिससे उन्हें जाना जाए। जबकि उनकी बात सिर-आँखों पर उठाने के लिए कई सत्ताधारी तैयार बैठे हैं। उनके चाचा और पिता, संजय और राजीव, दोनों ही अपने-अपने विशिष्ट कार्यक्रमों से जाने गए थे। वह कार्यक्रम कितने सफल हुए, वह दूसरी बात है। लेकिन उन्होंने स्वयं कुछ सोचा, योजना बनाई, और करने का यत्न किया। जबकि राहुल देश में लंबे समय से मौजूद घातक मुद्दों, तत्वों की पहचान तक करने में गड़बड़ा जाते हैं। जब पूरा देश अन्ना हजारे के बहाने भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपना आक्रोश प्रकट कर रहा था, तो राहुल हफ्तों तक पूरे सीन से ही गायब रहे।
ऐसी स्थिति में राजनीतिक नेतृत्व की उन की सामर्थ्य अनुमान का ही विषय है। यदि बागडोर उन के हाथ आई, तब क्या वही होगा जैसे पुराने जमाने में होता था? कि भोले शाहजादे के नाम पर अदृश्य तत्व शासन करेंगे। बोफोर्स, क्वात्रोच्ची, और संदिग्ध मिशनरियों के मामले में परिवार की भूमिका ने पर्याप्त संकेत दे दिया है। परिवार के निकट रहे नेता, लेखक अरुण नेहरू कह चुके हैं कि भारत में अवैध रूप से रह रह विदेशी मिशनरियों को बाहर करने के निर्णय पर राजमाता ने आपत्ति की थी। एक अन्य मामले में न्यायमूर्ति वधवा आयोग ने ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी दिवंगत ग्राहम स्टेंस को उड़ीसा में वनवासी हिन्दुओं का अवैध धर्मांतरण कराने में लिप्त पाया था। उस मिशनरी की विधवा को कांग्रेस नेताओं ने बड़ा राष्ट्रीय सम्मान दिया। क्यों? अभी एक खुले नक्सल समर्थक एक्टिविस्ट को एक सर्वोच्च राष्ट्रीय आयोग की समति में नियुक्त किया गया है, जब कि उसके विरुद्ध न्यायालय में राष्ट्र-द्रोह का मुकदमा चल रहा है। यह सब कौन लोग कर रहे हैं? इस पर राहुल क्या सोचते हैं, कुछ सोचते भी हैं या नहीं?
इन सब मुद्दों पर आम कांग्रेसियों की भावना निश्चय ही वह नहीं है, जो उनके आला कर रहे हैं। अतः यह संदेह निराधार नहीं कि वास्तविक शक्ति अदृश्य हाथों में जा रही है। देश-विदेश के मीडिया का एक प्रभावशाली हिस्सा राजपरिवार का प्रचार करता रहा है। वह कभी प्रश्न नहीं उठाता कि कुछ लोग देश की संवैधानिक प्रणाली से हट कर सत्ता का प्रयोग कर रहे हैं। (चर्चा तो यह भी है कि भारत के कई बड़े अंग्रेज मीडिया संस्थानों को विदेशी, मिशनरी पूँजी खरीद चुकी है। इसलिए भी उन संस्थानों का स्वर भारत-विरोधी और उग्र हिन्दू-विरोधी हुआ है।) जिस पद या समिति का देश के संविधान में कोई उल्लेख तक नहीं, वह हमारे सर्वोच्च नेताओं को निर्देश देती रहती है। यहाँ तक कि उन से हिसाब तक माँगती है। ऐसे ‘सलाहकार’ रूपी सुपर-शासक किसके प्रति जबावदेह हैं? रेसकोर्स रोड से अधिक महत्व जनपथ रखता है। यह महत्ता उन्हें देश के संविधान ने नहीं दी है, न संसद ने। तब किसने दी?
अभी उन्हीं स्वनामधन्य सुपर सलाहकारों ने सांप्रदायिकता के विरुद्ध एक ऐसे कानून का प्रस्ताव दिया है, जो स्थाई रूप से हिन्दुओं के मुँह पर ताला लगा देगा। किसी अज्ञात व्यक्ति की शिकायत पर भी कोई हिन्दू गिरफ्तार किया जा सकेगा। सांप्रदायिकता पर निगरानी करने वाली एक ऐसी अथॉरिटी बनेगी जो इस नाम पर राज्य सरकारों तक को बर्खास्त कर देगी। इस अथॉरिटी के सदस्यों में बहुसंख्या ‘अल्पसंख्कों’ की होगी। अर्थात्, यह नया कानून मानकर चलेगा कि हर हाल में, कहीं भी, कभी भी सांप्रदायिक हिंसा हिन्दू ही करेंगे, और इसलिए उसकी जाँच, विचार, तथा निर्णय करने वाली इस सुपर-अथॉरिटी में गैर-हिन्दू ही निर्णायक संख्या में होने चाहिए। अतः इस सत्ता की संरचना ही गैर-हिन्दू दबदबे की बनेगी।
न्याय, सच्चाई और संविधान के साथ ऐसा भयंकर मजाक कौन लोग कर रहे हैं? क्या धीरे-धीरे भारत पर एक प्रकार का विजातीय शासन स्थापित हो रहा है? नहीं तो अफजल-कसाब जैसों के पैरोकारों, नक्सल प्रचारकों, विदेशी मिशनरियों और पाकिस्तानी आई.एस.आई. के हम प्यालों और हर तरह के हिन्दू-विरोधियों को ऊँचे-ऊँचे स्थान कैसे मिलते जा रहे हैं? क्या राहुल इन निर्णयों का भवितव्य समझते हैं?
ऐसे प्रश्न हमारे बड़े अंग्रेजी पत्रकार नहीं पूछते। उलटे वे राहुल गाँधी को एक साँस में ही “भगवान बुद्ध, सम्राट अशोक और महात्मा गाँधी” की श्रेणी में रखकर देश को भरमाते हैं, जैसे तहलका ने किया था। इन सब के पीछे कुछ धूर्त लोगों का स्वार्थ भी हो सकता है। जिन्हें राजीव गाँधी ने ‘पावर ब्रोकर्स’ कहा था। उन्होंने कांग्रेस को ऐसे लोगों से दूर करने का प्रयास किया था। कम से कम अपने आरंभिक दिनों में वे ऐसा चाहते थे। राहुल को इन बातों पर सोचना चाहिए। वोट और सत्ता पाने, फिर उसे जैसे-तैसे अपने हाथ बनाए रखने की चाह में किए गए अविचारित कार्य कभी-कभी बहुत भारी पड़ते हैं। देश के लिए भी और नेता के लिए भी। स्वयं राजपरिवार का इतिहास इस का दुःखद उदाहरण है।

Posted By शंकर शरण On September 28, 2011 (9:35 am)

Wednesday, September 14, 2011

Robert Vadra, multi billionaire….truth behind.


Regarding Robert Vadra:


1. TATAs took 100 years to become billionaire, Ambanis took 50 years (after utilizing all its resources), and where as Robert Vadra took less than 10 years to become fastest multi billionaire.
2. All newspapers are scared to discuss the story of Robert Vadra because of severe threat from Sonia Gandhi and Congress govt.
3. After Robert Vadra got married with Priyanka Gandhi, Robert's father committed suicide under mysterious circumstances, his brother found dead in his Delhi residence and his sister found dead in mysterious car accident. These reports were not published in any Indian media.
4. He has stakes in premier located Malls, of India. His stakes are in DLF IPL, and DLF itself. He was involved in CWG corruption - DLF was responsible for development of Commonwealth games, and Kalmadi gave favouritism to DLS because of Robert Vadra's direct interest and business partnership with DLF.
5. Robert Vadra owns many Hilton Hotels including Hilton Gardens New Delhi.
6. Robert Vadra's association with Kolkata Knight Ryders has never been reported by Indian media.
7. He has 20% ownership in Unitech, Biggest beneficiary ownership of 2G Scam. Because of Robert's involvement in this scam, there are concerns that investigation would never reach decisive conclusion.
8. He owns prime property in India especially commercial hubs, and taxi business but for Air Taxi. He owns few private planes as well.
9. He has direct link with Italian businessman Quatrochi.
The Bureau of Civil Aviation Security has created a record of sorts by according special privilege to Robert Vadra, which entails him to walk in and out of any Indian airports without being subject to any security check. Only the President of India, Vice-President and a handful of other top dignitaries were accorded this rare distinction.

As a concerned citizen, I would like to know from the Government as to what was the special quality in Mr. Vadra that merited this rare honour. The government has no right to go in for such largesse that concerns with the security of the general public just for pleasing the son-in-law of Sonia Gandhi.


WAKE UP FELLOW INDIANS! FIGHT AGAINST CORRUPTION!!!!!!!

(Compiled by Adarsh Mehandru)