Wednesday, June 14, 2017

किसानों द्वारा कर्ज़ माफ की माँग

कर्ज़ माफ करना, मुफ्त लंगर बांटना, सब्सिडी देना, जाती के आधार पर आरक्षण देना, किसी भी राष्ट्र को अपाहिज बनाना है। समाज को कमजोर करना है।
कभी अचानक कोई प्राकृतिक आपदा आने पर सरकार की मदद जरूरी है, परंतु उसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिये। किसान व जवान भाईयों से पूरी हमदर्दी है। वर्षा के अभाव में बहुत किसान बर्बाद हुए, मदद जरूरी है, परंतु कर्ज़ माफ एक गलत परंपरा है। इसका दुष्परिणाम आरक्षण के रूप में हम भुगत रहे है, सब्सिडी के परिणाम स्वरूप कश्मीर आतंकवाद भी हमारे सामने है।
सक्षम बनाना, उचित शिक्षा, नीति,योजना, कार्यक्रम व opportunity उपलब्ध कराना ही सरकार का कार्य है।
कर्ज़ माफ के बदले  फसल बीमा एक हल है। कर्ज़ माफ, कर्ज़ भुगतान करने वाले को निरुत्साहित करती है, सब्सिडी या आरक्षण कुछ न करने को प्रेरित करती है। सब्सिडी और आरक्षण का सबसे ज्यादा कुप्रभाव मध्यम वर्ग को प्रभावित करता है। सरकार कोई भी सब्सिडी को कर दाताओं से ही वसूलती है,
पानी बिजली गैस या अन्य सभी सब्सिडी का भुगतान जनता ही करती है। आरक्षण से बने जज, डॉक्टर, आईएएस, इंजीनियर इत्यादि से देश कितनी उन्नति कर रहा है ये हमारे सामने है।
कुछ लोग सरकारी विज्ञापन पर आक्षेप करते है, जो आवश्यक है,
विज्ञापन, जानकारी व चर्चा किसी भी संस्था के लिए आवश्यक है, विलासता नहीं।
अगर सरकार या संस्था अपनी schemes को बताएगी नहीं तो जानकारी कैसे देगी।

Friday, July 1, 2016

आर्थराइटिस arthritis का उपचार by Rajiv Dixit

आर्थराइटिस का उपचार : राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

"घुटने कभी भी मत बदलिए"

इस अग्रेजी पद्धति के उपचार से प्रधानमन्त्री वाजपेयी जी की क्या हालत हुई है आपके सामने है चलते थे आज चल भी नहीं सकते

१. दोनों तरह के आर्थराइटिस (Osteoarthritis और Rheumatoid arthritis) मे आप एक दावा का प्रयोग करे जिसका नाम है चूना, वही चूना जो आप पान मे खाते हो। गेहूं के दाने के बराबर चूना रोज सुबह खाली पेट एक कप दही मे मिलाके खाना चाहिए, नही तो दाल मे मिलाके, नही तो पानी मे मिलाके पीना लगातार तीन महीने तक, तो आर्थराइटिस ठीक हो जाती है। ध्यान रहे पानी पीने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा। अगर आपके हाथ या पैर के हड्डी मे खट खट आवाज आती हो तो वो भी चूने से ठीक हो जायेगा।

२. दोनों तरह के आर्थराइटिस के लिए और एक अच्छी दवा है मेथी का दाना, एक छोटा चम्मच मेथी का दाना एक कांच के गिलास मे गरम पानी लेके उसमे डालना, फिर उसको रात भर भिगोके रखना, सबेरे उठके पानी सिप सिप करके पीना और मेथी का दाना चबाके खाना, 3महीने तक लेने से आर्थराइटिस ठीक हो जाती है। ध्यान रहे पानी पीने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा।

३. ऐसे आर्थराइटिस के मरीज जो पूरी तरह बिस्तर पकड़ चुके है, 40 साल से तकलीफ है या 30साल से तकलीफ है, कोई कहेगा 20साल से तकलीफ है, और ऐसी हालत हो सकती है के वे दो कदम भी न चल सके, हाथ भी नही हिला सकते है, लेटे रहते है बेड पे, करवट भी नही बदल सकते ऐसी अवस्था हो गयी है .... ऐसे रोगियों के लिए एक बहुत अच्छी औषधि है जो इसीके लिए काम आती है। एक पेड़ होता है उसे हिंदी में हरसिंगार कहते है, संस्कृत में पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है , उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और फूल की डंडी नारंगी रंग की होती है, और उसमे खुशबू बहुत आती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है। इस पेड़ के छह सात पत्ते तोड़ के पत्थर में पीस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके रोज सुबह खाली पेट पिलाना है जिसको भी बीस तीस चालीस साल पुराना आर्थराइटिस हो या जोड़ो का दर्द हो। यह उन सबके लिए अमृत की तरह काम करेगा इसको 3 महीने लगातार देना है अगर पूरी तरह ठीक नही हुआ तो फिर 10-15 दिन का गैप देके फिर से 3महीने देना है। अधिकतम केस मे ज्यादा से ज्यादा एक से डेढ़ महीने मे रोगी ठीक हो जाते है, इसको हर रोज नया बनाके पीना है, ये औषधि exclusive है और बहुत strong औषधि है इसलिए अकेली ही देना चाहिये, इसके साथ कोई भी दूसरी दावा न दे नही तो तकलीफ होगी। ध्यान रहे पानी पीने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा।

घुटने कभी भी मत बदलिए :
राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

RA Factor जिनका प्रोब्लेमाटिक है और डॉक्टर कहता है के इसके ठीक होने का कोई चांस नही है, कई बार कार्टिलेज पूरी तरह से ख़तम हो जाती है और डॉक्टर कहते है के अब कोई चांस नही है Knee Joints आपको replace करने ही पड़ेंगे, Hip joints आपको replace करने ही पड़ेंगे, तो जिनके घुटने निकाल के नया लगाने की नौबत आ गयी हो, Hip joints निकालके नया लगाना पड़ रहा हो उन सबके लिए यह औषधि है जिसका नाम है हरसिंगार का काड़ा।

राजीव भाई का कहना है के आप कभी भी Knee Joints को और Hip joints को replace मत कराइए, चाहे कितना भी अच्छा डॉक्टर आये और कितना भी बड़ा गारंटी दे पर कभी भी मत करिये। भगवान की जो बनाई हुई है आपको कोई भी दोबारा बनाके नही दे सकता, आपके पास जो है उसिको repair करके काम चलाइए। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री अटलजी ने यह प्रयास किया था, Knee Joints का replace हुआ अमेरिका के एक बहुत बड़े डॉक्टर ने किया पर आज उनकी तकलीफ पहले से जादा है पहले तो थोडा बहुत चल लेते थे अब चलना बिलकुल बंद हो गया है कुर्सी पे ले जाना पड़ता है, आप सोचिये जब प्रधानमंत्री के साथ यह हो सकता है आप तो आम आदमी है।

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें : http://www.youtube.com/watch?v=B0RX7alIatw

बुखार का दर्द का उपचार :

डेंगू जैसे बुखार मे शरीर मे बहुत दर्द होता है .. बुखार चला जाता है पर कई बार दर्द नही जाता | ऐसे केसेस मे आप हरसिंगार की पत्ते की काड़ा इस्तेमाल करे, 10-15 दिन मे ठीक हो जायेगा |

वन्देमातरम्

Wednesday, May 11, 2016

Kumbh Mela

Kumbh Mela is held at each of the four places namely Haridwar, Allahabad (Prayag), Nasik and Ujjain once in every 12 years. It is known to be a time when spiritual energy travels all around the place during this holy event. It’s a social harmony where you get to see many saints and sadhakas gathering at one place. This event even gives you the chance of seeking the blessings of these pious saints.
The position of the Sun, Moon and Jupiter in different zodiac signs determines the location of the Kumbh in each of these places.
*Kumbh in Haridwar* : When the Sun is in the zodiac sign Aries and Jupiter is in Aquarius it is held in Haridwar.
*Kumbh in Prayag* :  When the Sun is in Capricorn and Jupiter is in Taurus, it is held in Allahabad (Prayag).
*Kumbh in Nasik* : When Jupiter enters the zodiac sign Leo it is held in Nasik. It is also held in Nasik, when Jupiter, Sun and Moon enter the zodiac sign Cancer on Amavasya.
*Kumbh in Ujjain* : Ujjain, one of the most sacred places in India, is located on the banks of the sacred river Kshipra in the western region of Madhya Pradesh. Kumbh in Ujjain is held when a rare configuration of planets takes place which happens once in 12 years. When the Sun is in the zodiac sign Aries and Jupiter in the zodiac Leo, it is held in Ujjain. Considering its relevance to the zodiac ‘Leo’ meaning ‘Simha’ in Sanskrit, the Kumbh is also referred to as ‘Simhasth Kumbh’.
It is the great bathing festival which sees lakhs of devotees coming together from across the world to celebrate this month long congregation. The ceremonial bathing takes place in the holy River Kshipra on the full moon day of Chaitra month and continues in different intervals during the entire month of Vaishakh, culminating on the tenth full moon day.
_According to myth, holy dip in Kshipra river is very important during this festival_

माधवे धवले पक्षे सिंह जीवत्वेजे खौ।
तुलाराशि निशनाथे स्वातिभे पूर्णिमा तिथौ।
व्यतिपाते तु सम्प्राप्ते चन्द्रवासर -संचुते।
कुशस्थली -महाक्षेत्रे स्नाने मोक्षमवाच्युयात्।
Kumbh Mela is a mass Hindu pilgrimage of faith in which Hindus gather to bathe in a sacred river. Traditionally, four fairs are widely recognized as the Kumbh Melas:
the Haridwar Kumbh Mela,
the Allahabad Kumbh Mela,
the Nashik-Trimbakeshwar Simhastha and
the Ujjain Simhastha, although priests at other places have also claimed their local fairs to be Kumbh Melas. These four fairs are held periodically at one of the following places by rotation: Haridwar, Allahabad (Prayaga), Nashik district (Nashik and Trimbak) and Ujjain. The main festival site is located on the banks of a river: the Ganges (Ganga) at Haridwar; the confluence (Sangam) of the Ganges and the Yamuna and the now extinct (disappeared/ dried/ lost in time) Sarasvati at Allahabad; the Godavari at Nashik; and the Shipra at Ujjain. Bathing in these rivers is thought to cleanse a person of all sins.

At any given place, the Kumbh Mela is held once in 12 years. There is a difference of around 3 years between the Kumbh Melas at Haridwar and Nashik; the fairs at Nashik and Ujjain are celebrated in the same year or one year apart. The exact date is determined according to a combination of zodiac positions of the Jupiter, the Sun and the Moon. At Nashik and Ujjain, the Mela may be held while a planet is in Leo (Simha in Hindu astrology); in this case, it is also known as Simhastha. At Haridwar and Allahabad, an Ardha ("Half") Kumbh Mela is held every sixth year; a Maha ("Great") Kumbh Mela occurs after 144 years.

Saturday, October 3, 2015

Science and Philosophy of YAGYA





        
In physical terms Yagya is a process of sacrifices of specific herbs in the fire as it is best way of sacrifice matter with the help of thermal energy of fire and sound energy of mantras. The fumigation of specific substances in the Yagya, fire is a scientific method of subtulisation of matter into energy and expanding its potential and positive effects in the surrounding atmosphere. The electromagnetic waves generated thereby help in transmitting; at cosmic level, the desired sonic signals stores in mantras. Modern scientific research has shown significant therapeutic application of Yagya.
         The industrial wastes, rapid urbanization, deforestation, cutting of mountains, air and water pollution, disturbances in the ozone layer, radioactive waves etc have destabilised humans, animals, plants life style. Ozone layer depletion has been causing sunburn, skin cancer, virus, cataracts and weakening of immune system. In the houses/area where Yagya is performed, it creates a pure nutritional and medicinal atmosphere.

       Regarding Yagya Dr. Hafkine has mentioned that “mixing ghee and sugar and burning them creates smoke which kills the germs of certain diseases and secretion takes place from some glands relate to the wind-pipe, which fill our heart and mind with pleasure. Sugars present in Havishya have great power to purify the atmosphere. It kills the germs of T.B., measles, smallpox and cow-pox, remarks Prof. Tilward. According to Dr. Shirowich, a Russian scientist has remarked that (i) Cow’s milk contains great power of protection from atomic radiation; (ii) Houses having cow-dung covered floors enjoy complete protection from atomic radiation; (iii) If cow’s ghee is put into Yagya fire, its fumes lessen the effect of atomic radiation to a great extent. 

       The specific herbs required for medicinal hawan are Amla, Arjuna, Ashoka, Ashvgandha, Bakuchi, Bilva, daruharidra,ashapuri dhoop, Guggul, haritaki, nagakesar, neem ke beej, Pippali, Shatavri  Tagara and Samidha sticks along with camphor, Cow ghee, dhaan, sugar, dried cow dung (uple).

     The four Vedas also signify the philosophy of eternity role of Yagya and Gayatri. Atharveda also deals with sound therapy of mantras for treatment of human system at the physical, psychology and spiritual level. Samveda focus on musical chanting of mantra and fine form of Yagya is process of mental oblation on the surface of emotions through cosmic radiation of sound energy.  Yajurveda contains the knowledge of performing of Yagya as scientific experiments for global welfare.

           Significance of Yagya reflects from these mantras of Vedas

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्. होतारं रत्नधातमम् [ ऋग्वेद ///]

समिधाग्निं दुवस्यत घृतैः बोधयतातिथिं. आस्मिन् हव्या जुहोतन. [यजुर्वेद 3/1]

सायंसायं गृहपतिर्नो अग्निः प्रातः प्रातः सौमनस्य दाता. [अथर्ववेद 19/7/3]



Compiled

Friday, August 14, 2015

Independence Day India 15th August 1947 midnight....why



 Independence Day India 15th August 1947 midnight.

How many knows why and how this and date and midnight was chosen? When struggle of Independence was so intensified in 1940, When Subhash Chander ji’s aggression was at peak, why it took so long. Let us look into each of the above and find out the answers.
Why 1947?
The awakening of masses by Gandhi ji and the activities of Bose behind the scenes, which had intensified during 1940s, were cause of concern for the British. Just after World War II in 1945 the financial position of England was very weak; it was almost on the verge of bankruptcy. They were struggling to rule their own country, let alone their colonies. So, they made up their mind to free colonies like India. Lord Wavell initiated talks with Indian leaders for Indian Independence.  Despite several disagreements and disruptions, momentum was gaining. In Feb 1947, Lord Mountbatten was appointed as the last viceroy of India to take charge of the transfer of power. Initially June 1948 was decided for transferring of power from England to India

Immediately after taking over charge in Feb 1947, Lord Mountbatten had begun series of talks with Indian leaders for a consensus, due to conflicts between Jinnah & Nehru on the matter of partition. Jinnah’s demand for a separate nation had instigated large scale communal disturbances across India.  (This was certainly expected by Mountbatten as his policy was to weaken India.) In such circumstances he decided to pre-pone the date of independence by almost a year, from 1948 to 1947.
Why 15th Aug?
It was Lord Mountbatten who had personally decided the date of Aug 15 because he had considered that date to be very lucky for him. During the World War II, it was on Aug 15, 1945 the Japanese Army had surrendered before him (Lord Mountbatten was the commander of the allied forces).

Why midnight?
When the date of independence was decided and announced to public, there was an outrage among astrologers across the country because 15-Aug-1947 was an “unfortunate & unholy” date according to astrological calculations. Alternative dates were suggested but Lord Mountbatten was adamant on his lucky date, Aug 15. The compromised formula, astrologers suggested was the midnight between Aug 14 and 15 due to the simple reason that the day according to English starts at 12 AM, but according to Hindu calendar, starts at sunrise. Astrologers had insisted that the speech of acknowledgement of transfer of power be done within the 48 minutes in “Abhijeet Muhurta” between 11:51pm & 12:39am. Nehru had to deliver a speech only within that timeframe and an additional constraint was that the speech had to end by 12 AM, so that the holy conch (Shanka) is blown to herald the birth of a new nation at the stroke of midnight hour, and the rest is history.
Nehru chose to give his famous 'Tryst with destiny' speech (first after independence in Parliament) in English and not Hindi or Hindustani. The number of English speakers and its influence has only increased after the British left.

-Adarsh Mehandru